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September 24, 2016
ब्रायलर मुर्गीपालन करने से से पहले यह जानना जरूरी है की ब्रायलर मुर्गीपालन पालन क्या है और कैसे करें ? ब्रायलर मुर्गीपालन का पालन मांस के लिए किया जाता है। ब्रायलर प्रजाति के मुर्गा या मुर्गी अंडे से निकलने के बाद ४० से ५० ग्राम के ग्राम के होते हैं जो सही प्रकार से दाना- दवा खिलाने और सही रख-रखाव के बाद के बाद ६ हफ्ते में लगभग १.५ किलो से २ किलो के हो जाते हैं।आज ब्रायलर फार्मिंग एक सुविकसित व्यवसाय के रूप में उभर चूका है। ब्रायलर मुर्गीपालन कम समय में अधिक से अधिक पैसे कमाने का व्यवसाय है। इसे छोटे किसान भी छोटे गाँव में कर सकते हैं बस उन्हें सही गाइड की आवश्यकता है।
पुराने समय से ग्रामीण इलाकों में मुर्गीयों को पाला जाता रहा है। लेकिन आज के इस दौर में मुर्गीपालन एक बड़े व्यवसाय के रूप में उभर गया है जो किसानों की जीविकापार्जन का प्रमुख साधन बन गया है। मुर्गीपालन से बेरोजगारी की समस्या पूरी तरह से दूर हो सकती है। ऐसे युवा मुर्गीपालन को रोजगार बना सकते हैं जो बेरोजगारी का जीवन जी रहे हैं। यदि आप ब्रायलर मुर्गीपालन को सही और उन्नत तरीके से कर सकते हैं तो यह कम खर्च में अधिक आय दे सकती है। मुर्गी पालन में आपको कुछ तकनीकी बातों के बारे में पता होना चाहिए और बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) का पालन करना बहुत ही जरुरी होती है । ये सारी जानकारियां ग्रोवेल एग्रोवेट प्राइवेट लिमिटेड के वेबसाइट पर किताबों, लेख और वीडियो के माध्यम से उपलब्ध है ,आप उसे ध्यानपूर्वक देखें ,पढ़ें और पालन करें ।
कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां ब्रायलर मुर्गीपालन शुरू करने से पहले
मुर्गीपालन दो प्रकार के होते हैं :
१. ब्रायलर मुर्गीपालन -मांस के लिए किया जाता है।
२. लेयर मुर्गी पालन -अंडे के लिए किया जाता है।
मुर्गी पालन के लिए कैसे जगह हो ?
फार्म के लिए शेड का निर्माण :
दाने और पानी के बर्तनों की जानकारी :
बुरादा या लिटर :
ब्रूडिंग :
बिजली के बल्ब से ब्रूडिंग :
इस प्रकार के ब्रूडिंग के लिए आपको नियमित रूप से बिजली की आवश्यकता होती है। गर्मी के महीने में प्रति चूज़े को 1 वाट की आवश्यकता होती है जबकि सर्दियों के महीने में प्रति चूज़े को 2 वाट की आवश्यकता होती है। गर्मी के महीने में 4-5 दिन ब्रूडिंग किया जाता है और सर्दियों के महीने में ब्रूडिंग 12-15 दिन तक करना आवश्यक होता है। चूजों के पहले हफ्ते में ब्रूडर को लिटर से 6 इंच ऊपर रखें और दुसरे हफ्ते 10 से 12 इंच ऊपर।
गैस ब्रूडर से ब्रूडिंग :
जरूरत और क्षमता के अनुसार बाज़ार में गैस ब्रूडर उपलब्ध हैं जैसे की 1000 औ 2000 क्षमता वाले ब्रूडर। गैस ब्रूडर ब्रूडिंग का सबसे अच्छा तरिका है इससे शेड केा अन्दर का तापमान एक समान रहता है।
अंगीठी या सिगड़ी से ब्रूडिंग :
ये खासकर उन क्षेत्रों के लिए होता हैं जहाँ बिजली उपलब्ध ना हो या बिजली की बहुत ज्यादा कटौती वाले जगहों पर। लेकिन इसमें ध्यान रखना बहुत ज्यादा जरूरी होता है क्योंकि इससे शेड में धुआं भी भर सकता है या आग भी लग सकता है।
ब्रायलर मुर्गी दाना से जुडी जानकारी :
ब्रायलर फार्मिंग में 3 प्रकार के दाना की आवश्यकता होती है। यह दाना ब्रायलर चूजों के उम्र और वज़न के अनुसार दिया जाता है –
ब्रायलर मुर्गी के पीने का पानी :
ब्रायलर मुर्गा 1 किलो दाना खाने पर 2-3 लीटर पानी पीता है। गर्मियों में पानी का पीना दोगुना हो जाता है। जितने सप्ताह का चूजा उसमें 2 का गुणा करने पर जो मात्र आएगी, वह मात्र पानी की प्रति 100 चूजों पर खपत होगी, जैसे –
पहला सप्ताह = 1 X 2 = 2 लीटर पानी/100 चूजा
दूसरा सप्ताह = 2 X 2 = 4 लीटर पानी /100 चूजा
पिने के पानी में हमेशा एक्वाक्योर (Aquacure) मिला कर दें , यह पानी में मौजूद कीटाणुओं और बिसाणुओं को नष्ट कर पानी को स्वक्छ और शुद्ध कर देता है
ब्रायलर मुर्गीपालन के लिए जगह का हिसाब :
पहला सप्ताह – 1 वर्गफुट/3 चूज़े
दूसरा सप्ताह – 1 वर्गफुट/2 चूज़े
तीसरा सप्ताह से 1 किलो होने तक – 1 वर्गफुट/1 चूज़ा
1 से 1.5 किलोग्राम तक – 1.25 वर्गफुट/1 चूज़ा
1.5 किलोग्राम से बिकने तक 1.5 वर्गफुट/1 चूज़ा
सही प्रकार से चूजों को जगह मिलने पर चुज़ो को विकास अच्छा होता है और कई प्रकार की बिमारियों से भी उनका बचाव होता है।
ब्रायलर मुर्गीपालन के लिए लाइट या रोशनी का प्रबंध :
चूजों को 23 घंटे लाइट देना चाहिए और एक घंटे के लिए लाइट बंद करना चाहिए, ताकि चूज़े अंधेरा होने पर भी ना डरें। पहले 2 सप्ताह रोशनी में कमी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे चूज़े स्ट्रेस फ्री रहते हैं और दाना पानी अच्छे से खाते हैं। शेड के रौशनी को धीरे – धीरे कम करते जाना चाहिए।
मुर्गियों में बीमारियां से बचाव और टीकाकरण :
मुर्गियों में कई तरह की बीमारियां पाई जाती हैं। जैसे पुलोराम, रानीखेत, हैजा, मैरेक्स, टाईफाइड और परजीविकृमी आदि रोग होते हैं। जिससे मुर्गीपालकों को हर साल भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बिमारियों से बचाव के लिए समय -समय पर मुर्गियों का टीकाकरण बहुत ही जरुरी है ,कुछ बीमारियां की रोक-थाम केवल टीकाकरण से ही संभव है। मुर्गियों में बिमारियों से बचाव के लिए बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियमों ) का पालन करना बहुत ही जरुरी और महत्वपूर्ण है।
बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) :
ग्रोवेल एग्रोवेट प्राइवेट लिमिटेड के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि योजनाबद्ध तरीके से ब्रायलर मुर्गीपालन किया जाए तो कम खर्च में अधिक आय की जा सकती है। बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। वजह, कभी-कभी लापरवाही के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भारी क्षति उठानी पड़ती है। इसलिए मुर्गीपालन में ब्रायलर फार्म का आकार और बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मुर्गियां तभी मरती हैं जब उनके रखरखाव में लापरवाही बरती जाए।
ब्रायलर मुर्गीपालन में हमें कुछ तकनीकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए। जैविक सुरक्षा के नियम का भी पालन होना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें। शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें। बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रखना चाहिए। कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि को शेड में न घुसने दें। मरे हुए चूजे, वैक्सीन के खाली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें, समय-समय पर शेड के बाहर विराक्लीन ( Viraclean ) का छिड़काव व टीकाकरण नियमों का पालन करें। समय पर सही दवा का प्रयोग करें। पीने के पानी में एक्वाक्योर (Aquacure) का प्रयोग करें।
मुर्गा मंडी की गाड़ी को फार्म से दूर खड़ा करें। मुर्गी के शेड में प्रतिदिन 23 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है। एक घंटे अंधेरा रखा जाता है। इसके पीछे मंशा यह कि बिजली कटने की स्थिति में मुर्गियां स्ट्रेस की शिकार न हों।
गर्मी में ब्रायलर मुर्गीपालन :
गर्मियों के समय में ब्रायलर मुर्गीपालन करने वाले लोगों को चाहिए कि वे मुर्गियों को तेज तापमान और अधिक गर्मी से बचाय जाए। मौसम में बदलाव की वजह से मुर्गियों की मौत तक हो सकती है। इस वह से मुर्गी पालन करने वालों को अधिक हानि हो सकती है। इसलिए मुर्गियों की छत का गर्मी से बचाने के लिए छत पर घास व पुआल आदि को डाल सकते हैं। या छत पर सफेदी करवा सकते हैं। सफेद रंग की सफेदी से छत ठंडी रहती है। साथ ही आप मुर्गियों के डेरे पर पंखा आदि को भी लगा सकते हैं।