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August 28, 2016
गर्भधारण से भैंस के ब्याने तक के समय को गर्भकाल कहते हैं। भैंस में गर्भकाल 310-315 दिन तक का होताहै। गर्भधारण की पहली पहचान भैंस में मदचक्र का बन्द होना है परन्तु कुछ भैंसों में शान्त मद होने के कारणसगर्भता का पता ठीक प्रकार से नहीं लग पाता। अत: गर्भाधान के 21 वें दिन के आसपास भैंस को दोबारा मदमें न आना गर्भधारण का संकेत मात्रा है, विश्वसनीय प्रमाण नहीं। अत: पशुपालक भार्इयों को चाहिए कि गर्भाधानके दो महीने बाद डाक्टर द्वारा गर्भ जाँच अवश्य करवायें।
गाभिन भैंसों की की देखभाल में तीन प्रमुख बातें आती है:
गाभिन भैंसों की पोषण प्रबन्ध :
गाभिन भैंस की देखभाल का प्रमुख तथ्य यह है कि भैंस को अपने जीवन यापन व दूध देने के अतिरिक्त बच्चेके विकास के लिए भी पोषक तत्वों और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में बच्चेकी सबसे अधिक बढ़वार होती है। इसलिए भैंस को आठवें, नवें और दसवें महीने में अधिक पोषक आहार कीआवश्यकता पड़ती है। इसी समय भैंस अगले ब्यांत में अच्छा दूध देने के लिये अपना वजन बढ़ाती है तथापिछले ब्यांत में हुर्इ पोषक तत्वों की कमी को भी पूरा करती है। यदि इस समय खान-पान में कोर्इ कमी रहजाती है तो निम्नलिखित परेशानियाँ हो सकती हैं|
Ø बच्चा कमजोर पैदा होता है तथा वह अंधा भी रह सकता है।
Ø भैंस फूल दिखा सकती है
Ø प्रसव उपरांत दुग्ध ज्वर हो सकता है
Ø जेर रूक सकती है
Ø बच्चेदानी में मवाद पड़ सकती है तथा ब्यांत का दूध उत्पादन भी काफी घट सकता है।
गर्भावस्था के समय भैंस को संतुलित एवं सुपाच्य चारा खिलाना चाहिए। गर्भावस्था के समय भैंस को खनिज लवण और विटामिन्स अवश्य देना चाहिये। खनिज लवण और विटामिन्स की पूर्ति के लिए सबसे बेहतरीन और प्रभावकारी टॉनिक है अमीनो पॉवर (Amino Power )
गाभिन भैंसों की आवास प्रबन्ध :
Ø गाभिन भैंस को आठवें महीने के बाद अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए।
Ø भैंस का बाड़ा उबड़-खाबड़ तथा फिसलन वाला नहीं होना चाहिए।
Ø बाड़ा ऐसा होना चाहिए जो वातावरण की खराब परिस्थितियों जैसे अत्याधिक सर्दी, गर्मी और बरसात से भैंस को बचा सके और साथ में हवादार भी हो।
Ø बाडे़ में कच्चा फर्श/रेत अवश्य हो। बाड़े में सीलन नहीं होनी चाहिए। स्वच्छ पीने के पानी का प्रबन्ध भीहोना चाहिए।
सामान्य प्रबन्ध
Ø भैंस अगर दूध दे रही हो तो ब्याने के दो महीने पहले उसका दूध सुखा देना बहुत जरूरी होता है। ऐसा नकरने पर अगले ब्यांत का उत्पादन काफी घट जाता है।
Ø गर्भावस्था के अंतिम दिनों में भैंस को रेल या ट्रक से नहीं ढोना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे लम्बी दूरीतक पैदल भी नहीं चलाना चाहिए।
Ø भैंस को ऊँची नीची जगह व गहरे तालाब में भी नहीं ले जाना चाहिए। ऐसा करने से बच्चेदानी में बल पड़सकता है। लेकिन इस अवस्था में प्रतिदिन हल्का व्यायाम भैंस के लिए लाभदायक होता है। गाभिन भैंस को ऐसे पशुओं से दूर रखना चाहिए जिनका गर्भपात हुआ हो।
Ø पशु के गर्भधारण की तिथि व उसके अनुसार प्रसव की अनुमानित तिथि को घर के कैलेण्डर या डायरी में प्रमुखता से लिख कर रखें भैंस की गर्भावस्था लगभग 310 दिन की अवधि की होती है इससे किसान भाई पशु के ब्याने के समय से पहले चौकन्ने हो जायें व बयाने के दोरान पशु का पूरा ध्यान रखें ।
Ø गाभिन भैंस को उचित मात्रा में सूर्य की रोशनी मिल सके इसका ध्यान रखें। सूर्य की रोशनी से भैंस के शरीर में विटामिन डी 3 बनता है जो कैल्शियम के संग्रहण में सहायक है जिससे पशु को बयाने के उपरांत दुग्ध ज्वर से बचाया जा सकता है। ऐसा पाया गया है की गर्भावस्था के अंतिम माह में पशु चिकित्सक द्वारा लगाया जाने वाला विटामिन ई व सिलेनियम का टिका प्रसव उपरांत होने वाली कठिनाईयों जैसे की जेर का न गिरना इत्यादि में लाभदायक होता है। विटामिन ई , सिलेनियम और विटामिन डी की कमी की पूर्ति के लिए आप भैंसों को ग्रो ई-सेल (Grow E-Sel ) और ग्रो-कैल डी3 (Grow-Cal D 3) दें ।
पशुपालक भाईयों को संभावित प्रसव के लक्षणों का ज्ञान भी आवश्यक होना चाहिए जोकि इस प्रकार हैं ।
प्रसव अवस्था
बच्चे के जन्म देने की प्रक्रिया को प्रसव कहते हैं। प्रसव के आसपास का समय मां और बच्चा दोनों के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। थोड़ी सी असावधानी भैंस और उसके बच्चे के लिए घातक हो सकती है, तथा भैंस का दूध उत्पादन भी बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।
प्रसव के बाद गाभिन भैंसों की देखभाल
प्रसव के बाद भैंस की देखभाल में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
Ø पिछले हिस्से व अयन को धोकर, एक-दो घंटे के अंदर बच्चे को खीस पिला देनी चाहिए।
Ø भैंस को गुड़, बिनौला तथा हरा चारा खाने को देना चाहिए। उसे ताजा या हल्का गुनगुना पानी पिलाना चाहिए। अब उसके जेर गिरा देने का इंतजार करना चाहिए।
Ø आमतौर पर भैंस ब्याने के बाद 2-8 घंटे में जेर गिरा देती है। जेर गिरा देने के बाद भैंस को अच्छी तरह से नहला दें। यदि योनि के आस-पास खरोंच या फटने के निशान हैं तो तेल आदि लगा दें जिससे उस पर मक्खियाँ न बैठें।
Ø भैंस पर तीन दिन कड़ी नजर रखें। क्योंकि ब्याने के बाद
नवजात बच्चे की देखभाल
Ø जन्म के तुरंत बाद बच्चे की देखभाल आवश्यक है। उसके लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए।
Ø जन्म के तुरंत बाद बच्चे के ऊपर की जेर/झिल्ली हटा दें तथा नाक व मुंह साफ करें।
Ø यदि सांस लेने में दिक्कत हो रही है तो छाती मलें तथा बच्चे की पिछली टांगें पकड़ कर उल्टा लटकाएं।
Ø बच्चे की नाभि को तीन-चार अंगुली नीचे पास-पास दो स्थानों पर सावधानी से मजबूत धागे से बांधे | अब नये ब्लेड या साफ कैंची से दोनों बंधी हुर्इ जगहों के बीच नाभि को काट दें। इसके बाद कटी हुर्इ नाभि पर टिंचर आयोडीन लगा दें।
Ø बच्चे को भैंस के सामने रखें तथा उसे चाटने दें। बच्चे को चाटने से बच्चे की त्वचा जल्दी सूख जाती है, जिससे बच्चे का तापमान नहीं गिरता, त्वचा साफ हो जाती है, शरीर में खून दौड़ने लगता है तथा माँ और बच्चे का बंधन पनपता है। इससे माँ को कुछ लवण और प्रोटीन भी प्राप्त हो जाती है।
Ø यदि भैंस बच्चे को नहीं चाटती है तो किसी साफ तौलिए से बच्चे की रगड़ कर सफार्इ कर दें। नवजात बच्चे को जन्म के 1-2 घंटे के अंदर खीस अवश्य पिलाऐ
Ø जन्म के1-2 घंटे के अंदर बच्चे को खीस अवश्य पिलाएं। इसके लिए जेर गिरने का इंतजार बिल्कुल न करें। एक -दो घंटे के अंदर पिलाया हुआ खीस बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है, जिससे बच्चे को खतरनाक बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिलती है।
Ø बच्चे को उसके वजन का 10 प्रतिशत दूध पिलाना चाहिए। उदाहरण के लिए आमतौर पर नवजात बच्चा 30 कि0ग्रा0 का होता है। वजन के अनुसार उसे 3 कि0ग्रा0 दूध(1.5 कि0ग्रा0 सुबह व 1.5 कि0ग्रा0 शाम) पिलाएं।
Ø यह ध्यान जरूर रखें कि पहला दूध पीने के बाद बच्चा लगभग दो घंटे के अंदर मल त्याग कर दे।
Ø बच्चे को अधिक गर्मी व सर्दी से बचाकर साफ जगह पर रखें।
Ø भैंस के बच्चे को जूण के लिए दवार्इ (कृमिनाशक दवा) 10 दिन की उम्र पर जरूर पिला दें। यह दवा 21 दिन बाद दोबारा पिलानी चाहिये।
आप उपयुक्त बातों का ध्यान रखें और अमल करें तो भैंस और बच्चे दोनों स्वस्थ रहेंगें ।