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गर्मी में पशुपालन कैसे करें ?

गर्मी में पशुपालन कैसे करें ?

May 25, 2015

गर्मी में पशुपालन  करते समय पशुओं की विशेष देखभाल की जरुरत होती है क्योकि बेहद गर्म मौसम में , जब वातावरण का तापमान ‍ 42-48 °c तक पहुँच जाता है और गर्म लू के थपेड़े चलने लगतें हैं तो पशु दबाव की स्थिति में आ जाते हैं। इस दबाव की स्थिति का पशुओं की पाचन प्रणाली और दूध उत्पादन क्षमता पर उल्टा प्रभाव पड़ता है।गर्मी में पशुपालन  करते समय नवजात पशुओं की देखभाल में अपनायी गयी तनिक सी भी असावधानी उनकी भविष्य की शारीरिक वृद्धि , स्वास्थ्य , रोग प्रतिरोधी क्षमता और उत्पादन क्षमता पर स्थायी कुप्रभाव डाल सकती है । गर्मी में पशुपालन करते समय करते समय करते समय  ध्यान न देने पर पशु के सूखा चारा खाने की मात्रा में १०–३० प्रतिशत और दूध उत्पादन क्षमता में १० प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। साथ ही साथ अधिक गर्मी के कारण पैदा हुए आक्सीकरण तनाव की वजह से पशुओं की बीमारियों से लड़नें की अंदरूनी क्षमता पर बुरा असर पडता है और आगे आने वाले बरसात के मौसम में वे विभिन्न बीमारियों के शिकार हो जाते हैं ।पशुओं को भीषण गर्मी, लू एवं तापमान के दुष्प्रभावों से कैसे बचाएं पशुधन को भीषण गर्मी, लू एवं तापमान के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए एहतियात बरतने की काफी आवश्कता होती है ।गर्मी के दिनों  में तेज गर्म मौसम तथा तेज गर्म हवाओं का प्रभाव पशुओं की सामान्य दिनचर्या को प्रभावित करता है। भीषण गर्मी की स्थिति में पशुधन को सुरक्षित रखने के लिए विशेष प्रबन्धन एवं उपाय करने की आवश्कता होती है  , जिनमें ठंडा एवं छायादार पशु आवास, स्वच्छ पीने का पानी आदि पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।

गर्मी में पशुपालन  करते समय दुधारू एवं नवजात पशुओं की देखभाल की  हेतु निम्नलिखित उपाय करनी चाहिये :

  • सीधे तेज धूप और लू से नवजात पशुओं को बचाने के लिए नवजात पशुओं को रखे जाने वाले पशु आवास के सामने की ओर खस या जूट के बोरे का पर्दा लटका देना चाहिये ।
  • नवजात बच्चे के जन्म के तुरंत बाद उसकी नाक और मुँह से सारा म्यूकस अर्थात लेझा बेझा बाहर निकाल देना चहिये । यदि बच्चे को साँस लेने में अधिक दिक्कत हो तो उसके मुँह से मुँह लगा कर श्वसन प्रक्रिया को ठीक से काम करने देने में सहायता पहुँचानी चहिये ।
  • नवजात बछड़े का नाभि उपचार करने के तहत उसकी नाभिनाल को शरीर से आधा इंच छोड़ कर साफ़ धागे से कस कर बांध देना चहिये। बंधे स्थान के ठीक नीचे नाभिनाल को स्प्रिट से साफ करने के बाद नये और स्प्रिट की मदद से कीटाणु रहित किये हुए ब्लेड की मदद से काट देना चहिये । कटे हुए स्थान पर खून बहना रोकने के लिए टिंक्चर आयोडीन दवा लगा देनी चहिये ।
  • नवजात बछड़े को जन्म के आधे घंटे के भीतर माँ के अयन का पहला स्राव जिसे खीस कहते हैं पिलाना बेहद जरूरी होता है । यह खीस बच्चे के भीतर बीमारियों से लड़ने की क्षमता के विकास और पहली टट्टी के निष्कासन में मदद करता है ।
  • कभी यदि दुर्भाग्यवश बच्चे की माँ की जन्म देने के बाद मृत्यु हो जाती है तो कृत्रिम खीस का प्रयोग भी किया जा सकता है । इसे बनाने के लिए एक अंडे को भलीभाँति फेंटने के बाद ३०० मिलीलीटर पानी में मिला देते हैं । इस मिश्रण में १/२ छोटा चम्मच रेंडी का तेल और ६०० मिलीलीटर सम्पूर्ण दूध मिला देते हैं ।इस मिश्रण को एक दिन में ३ बार की दर से ३-४ दिनों तक
    पिलाना चहिये ।
  • इसके बाद यदि संभव हो तो नवजात बछड़े/ बछिया का वजन तथा नाप जोख कर लें और साथ ही यह भी ध्यान दें कि कहीं बच्चे में कोई असामान्यता तो नहीं है । इसके बाद बछड़े/ बछिया के कान में उसकी पहचान का नंबर डाल दें ।

गर्मी में पशुओं में लू के लक्षण , बचाव और उपचार :

वातावरण में नमी और ठंडक की कमी , पशु आवास में स्वच्छ वायु न आना, कम स्थान में अधिक पशु रखना और गर्मी के मौसम में पशु को पर्याप्त मात्रा में पानी न पिलाना लू लगने के प्रमुख कारण हैं। लू अधिक लगने पर पशु मर भी सकता है ।तेज गर्मी से बचाव प्रबंधन में जरा सी लापरवाही से पशु को ‘लू‘ नामक रोग हो जाता है। 

गर्मी में पशुओं में लू लगने के लक्षण :

अधिक गर्म समय में लू लगने के कारण पशु को तेज बुखार आ जाता है और बेचैनी बढ़ जाती है पशुओं को आहार लेने में अरुचि, तेज बुखार, हांफना, मुंह से जीभ बाहर निकलना, मुंह के आसपास झाग आ जाना, आंख व नाक लाल होना, नाक से खून बहना, पतला दस्त होना,  श्वास कमजोर पड़ जाना, उसकी  हृदय की धड़कन तेज होना आदि लू-लगने के प्रमुख लक्षण है।‘लू‘ से ग्रस्त पशु को तेज बुखार हो जाता है और पशु सुस्त होकर खाना पीना बन्द कर देता है। शुरू में पशु की श्वसन गति एवं नाडी गति तेज हो जाती है। कभी-कभी नाक से खून भी बहने लगता है। पशु पालक के समय पर ध्यान नहीं देने से पशु की श्वसन गति धीरे-धीरे कम होने लगती है एवं पशु चक्कर खाकर बेहोशी की दशा में ही मर जाता है।

पशुओं में लू लगने के उपचार :

लू से पशुओं को बचाने के लिए कुछ सावधानियां बरतनी चाहिये :

  • डेरी को इस प्रकार बनाये की सभी जानवरों के लिए उचित स्थान हो ताकि हवा को आने जाने के लिए जगह मिले, ध्यान रहे की शेड खुला हवादार हो।
  • लू‘ लगने पर पशु को ठण्डे स्थान पर बांधे तथा माथे पर बर्फ या ठण्डे पानी की पट्टियां बांधे जिससे पशु को तुरन्त आराम मिले।
  • पशु को प्रतिदिन 1-2 बार ठंडे पानी से नहलाना चाहिए।
  • पशु के लिए पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  • मवेशियों को गर्मी से बचाने के लिए पशुपालक उनके आवास में पंखे, कूलर और फव्वारा सिस्टम लगा सकते हैं।
  • दिन के समय में उन्हें अन्दर बांध कर रखें ।
  • लू की चपेट में आने और ठीक नहीं होने पर पशु को तुरंत पशुचिकित्सक को दिखाएं ।
  • पशुओं को  एलेक्ट्रल एनर्जी ( Electral Energy ) देनी चाहिए।

गर्मीं में पशुओं की स्वस्थ के देखभाल और खाने -पिने की ब्यवस्था :

गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा अधिक खिलावें, पशु इसे चाव से खाता है तथा हरे चारे में 70-90 प्रतिशत जल की मात्रा होती है, जो समय-समय पर पशु शरीर को जल की आपूर्ति भी करता है। इस मौसम में पशुओं को भूख कम व प्यास अधिक लगती है। इसके लिए गर्मी में पशुओं को स्वच्छ पानी आवश्यकतानुसार अथवा दिन में कम से कम तीन बार अवश्य पिलावें इससे पशु शरीर के तापमान को नियंत्रित बनाये रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा पानी में थोड़ी मात्रा में नमक व आटा मिलाकर पिलाना भी अधिक उपयुक्त है इससे अधिक समय तक पशु के शरीर में पानी की आपूर्ति बनी रहती है, जो शुष्क मौसम में लाभकारी भी हैं।

गर्मी के मौसम में दुग्ध उत्पादन एवं पशु की शारीरिक क्षमता बनाये रखने की दृष्टि से पशु आहार का भी महत्वपूर्ण योगदान है. गर्मी में पशुपालन करते समय पशुओं को हरे चारे की अधिक मात्रा उपलब्ध कराना चाहिए. इसके दो लाभ हैं, एक पशु अधिक चाव से स्वादिष्ट एवं पौष्टिक चारा खाकर अपनी उदरपूर्ति करता है, तथा दूसरा हरे चारे में 70-90 प्रतिशत तक पानी की मात्रा होती है, जो समय-समय पर जल की पूर्ति करता है. प्राय: गर्मी में मौसम में हरे चारे का अभाव रहता है. इसलिए पशुपालक को चाहिए कि गर्मी के मौसम में हरे चारे के लिए मार्च, अप्रैल माह में मूंग , मक्का, काऊपी, बरबटी आदि की बुवाई कर दें जिससे गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा उपलब्ध हो सके. ऐसे पशुपालन जिनके पास सिंचित भूमि नहीं है, उन्हें समय से पहले हरी घास काटकर एवं सुखाकर तैयार कर लेना चाहिए. यह घास प्रोटीन युक्त, हल्की व पौष्टिक होती है. । गर्मी के दिनों में पशुओं के चारे में एमिनो पावर (Amino Power) और ग्रो बी-प्लेक्स (Grow B-Plex)  मिलाकर  देना लाभदायक रहता है।

गर्मीं के दबाब के कारण पशुओं के पाचन प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है और भूख कम हो जाती है , इस स्थिति से निपटने के लिये और पशुओं की खुराक बढ़ाने के लिये पशुओं को नियमित रूप से ग्रोलिव फोर्ट (Growlive Forte)  देनी चाहिये।

इस मौसम में पशुओं को भूख कम लगती है और प्यास अधिक. इसलिए पशुओं को पर्याप्त मात्रा में दिन में कम से कम तीन बार पानी पिलाना चाहिए। जिससे शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करने में मदद मिलती है. इसके अलावा पशु को पानी में थोड़ी मात्रा में नमक एवं आटा मिलाकर पानी पिलाना चाहिए।पर्याप्त मात्रा में साफ सुथरा ताजा पीने का पानी हमेशा उपलब्ध होना चहिये।पीने के पानी को छाया में रखना चाहिये।पशुओं से दूध निकालनें के बाद उन्हें यदि संभव हो सके तो ठंडा पानी पिलाना चाहिये ।गर्मी में ३-४ बार पशुओं को अवश्य ताजा ठंडा पानी पिलाना चहिये । पशु को प्रतिदिन ठण्डे पानी से भी नहलाने की सलाह दी जाती है।भैंसों को गर्मी में ३-४ बार और गायों को कम से कम २ बार नहलाना चाहिये ।पशुओं को नियमित रूप से खुरैरा करना चाहिये ।

खाने –पीने की नांद को नियमित अंतराल पर विराक्लीन(Viraclean) से धोना चाहिये ।रसोई की जूठन और बासी खाना पशुओं को कतई नहीं खिलाना चाहिये ।

कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ जैसे: आटा,रोटी,चावल आदि पशुओं को नहीं खिलाना चाहिये।पशुओं के संतुलित आहार में दाना एवं चारे का अनुपात ४० और ६० का रखना चहिये ।साथ ही व्यस्क पशुओं को रोजाना ५०-६० ग्राम एलेक्ट्रल एनर्जी ( Electral Energy ) तथा छोटे बच्चों को १०-१५ ग्राम एलेक्ट्रल एनर्जी ( Electral Energy ) जरूर देना चहिये ।गर्मियों के मौसम में पैदा की गयी ज्वार में जहरीला पदर्थ हो सकता है जो पशुओं के लिए हानिकारक होता है । अतः इस मौसम में यदि बारिश नहीं हुई है तो ज्वार खिलाने के पहले खेत में २-३ बार पानी लगाने के बाद ही ज्वार चरी खिलाना चहिये ।

पशुओं का इस मौसम में गलाघोंटू , खुरपका मुंहपका , लंगड़ी बुखार आदि बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण जरूर कराना चाहिये जिससे वे आगे आने वाली बरसात में इन बीमारियों से बचे रहें।पशुओं को नियमित रूप से एलेक्ट्रल एनर्जी ( Electral Energy )अवश्य देनी चाहिए।

गर्मी के दिनों में पशुओं के आवास प्रबंधन:  पशुपालकों को पशु आवास हेतु पक्के निर्मित मकानों की छत पर सूखी घास या कडबी रखें ताकि छत को गर्म होने से रोका जा सके। पशु आवास के अभाव में पशुओं को छायाकार पेड़ों के नीचे बांधे। पशु आवास में गर्म हवाओं का सीधा प्रवाह नहीं होने पावे इसके लिए लकड़ी के फंटे या बोरी के टाट को गीला कर दें, जिससे पशु आवास में ठण्डक बनी रहे। पशु आवास गृह में आवश्यकता से अधिक पशुओं को नहीं बांधे तथा रात्रि में पशुओं को खुले स्थान पर बांधे। सीधे तेज धूप और लू से पशुओं को बचाने के लिए पशुशाला के मुख्य द्वार पर खस या जूट के बोरे का पर्दा लगाना चाहिये ।पशुओं के आवास के आस पास छायादार वृक्षों की मौजूदगी पशुशाला के तापमान को कम रखने में सहायक होती है ।गाय , भैस की आवास की छत यदि एस्बेस्टस या कंक्रीट की है तो उसके ऊपर ४ -६ इंच मोटी घास फूस की तह लगा देने से पशुओं को गर्मी से काफ़ी आराम मिलाता है ।पशुओं को छायादार स्थान पर बाँधना चाहिये ।

इन उपायों और निर्देशों को अपना कर दुधारू पशुओं की देखभाल एवं नवजात पशुओं की देखभाल उचित तरीके से की जा सकती है और गर्मी के प्रकोप और बिमारियों से बचाया जा सकता है तथा उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

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