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May 21, 2017
वर्ष के विभिन्न महीनों में पशुपालन से सम्बन्धित कार्य ग्रोवेल का पशुपालन कैलेंडर में इस प्रकार हैं ।
अप्रैल (चैत्र)
1. खुर पक्कने व मुँह पकने से सम्बन्धित रोग से बचाव टीका लगवायें।
2. जायद के हरे चारे की बुआई करें, बरसीम, चारा, बीज उत्पादन हेतु कटाई कार्य करें।
3. अधिक आय के लिए स्वच्छ दुग्ध उत्पादन करें।
4. अन्तः एवं बाह्य परजीवी का बचाव दवा स्नान/दवा पान से करें। पशुओं को नियमित रूप से ग्रोवेल का एलेक्ट्रल एनर्जी ( Electral Energy ) दें ।
मई (बैशाख)
1. बांझपन की चिकित्सा करवायें तथा गर्भ परीक्षण करायें।
2. परजीवी से बचाव हेतु पशुओं में उपचार करायें।
3. पशु को लू एवं गर्मी से बचाने की व्यवस्था करें।
4. पशु को सुबह और शाम नहलायें।
5. पशु के पिलाने वाले पानी में एक्वाक्योर ( Aquacure ) मिलकर स्वच्छ करें और अधिक से अधिक पानी पिलायें । ।
6. पशुओं को हरा चारा पर्याप्त मात्रा में खिलायें और पशुओं को नियमित रूप से ग्रोवेल का एलेक्ट्रल एनर्जी ( Electral Energy ) दें ।
7. गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका सभी पशुओं में लगवायें।
जून (जेठ)
1. गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका अवशेष पशुओं में लगवायें।
2. पशु को लू से बचायें।
3. हरा चारा पर्याप्त मात्रा में दें।
4. परजीवी निवारण हेतु दवा पशुओं को पिलवायें।
5. खरीफ के चारे मक्का, लोबिया के लिए खेत की तैयारी करें।
6. बांझ पशुओं का उपचार करायें।
7. सूखे खेत की चरी न खिलायें इससे जहर फैलने का डर रहता है ।
जुलाई (आषाढ़)
1. गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका शेष पशुओं में लगवायें।
2. खरीफ चारा की बीजाई करें तथा इससे सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करें।
3. पशुओं को अन्तः कृमि की दवा पान करायें।
4. वर्षा ऋतु में पशुओं के रहने की उचित व्यवस्था करें।
5. ब्रायलर पालन करें, आर्थिक आय बढ़ती है ।
6. पशु दुहान के समय खाने को चारा डाल दें।
7. पशुओं को खड़िया का सेवन करायें।
8. कृत्रिम गर्भाधान अपनायें।
अगस्त (सावन)
1. नये आये पशुओं तथा अवशेष पशुओं में गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीकाकरण करवायें।
2. लिवर फ्लूक के लिए दवा पान करायें।
3. गर्भित पशुओं की उचित देखभाल करें।
4. ब्याये पशुओं को अजवाइन, सोंठ तथा गुड़ खिलायें इससे पहले ये देख लें कि जेर निकल गया है या नहीं ।
5. जेर न निकलनें पर पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।
6. भेड़/बकरियों को परजीवी की दवा अवश्य पिलायें।
सितम्बर (भादौ)
1. खीस पिलाकर रोग निरोधी क्षमता बढ़ावें।
2. दुग्ध में छिछड़े आने पर थनैला रोग की जाँच अस्पताल पर करायें।
3. तालाब में पशुओं को न जाने दें।
4. गर्भ परीक्षण एवं कृत्रिम गर्भाधान करायें।
5. ब्याये पशुओं को खड़िया पिलायें।
6. भैंसों के नवजात शिशुओं का विशेष ध्यान रखें।
7. पशुओं की डिवर्मिंग करायें।
8. मुँहपका तथा खुरपका का टीका लगवायें।
9. अवशेष पशुओं में H.S. तथा B.Q. का टीका लगवायें।
10. उत्पन्न संतति को खीस (कोलेस्ट्रम) अवश्य पिलायें।
अक्टूबर (क्वार/आश्विन)
1. खुरपका-मुँहपका का टीका अवश्य लगवायें।
2. बरसीम एवं रिजका के खेत की तैयारी एवं बुआई करें।
3. निम्न गुणवत्ता के पशुओं का बाधियाकरण करवायें।
4. उत्पन्न संततियों की उचित देखभाल करें।
5. स्वच्छ जल पशुओं को पिलायें।
6. दुहान से पूर्व अयन को धोयें।
नवम्बर (कार्तिक)
1. खुरपका-मुँहपका का टीका अवश्य लगवायें।
2. कृमिनाषक दवा का सेवन करायें।
3. पशुओं को संतुलित आहार दें।
4. बरसीम तथा जई अवश्य बोयें।
5. लवण मिश्रण चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट ( Chelated Growmin Forte ) खिलायें।
6. थनैला रोग होने पर उपचार करायें।
दिसम्बर (अगहन/मार्गशीर्ष))
1. सूकर में स्वाईन फीवर का टीका अवश्य लगायें।
2. खुरपका-मुँहपका रोग का टीका लगवायें।
3. वयस्क तथा बच्चों को पेट के कीड़ों की दवा पिलायें।
4. बरसीम की कटाई करें।
5. पशुओं का ठंड से बचाव करें, परन्तु झूल डालने के बाद आग से दूर रखें।
जनवरी (पौष)
1. पशुओं का शीत से बचाव करें।
2. खुरपका-मुँहपका का टीका लगवायें।
3. उत्पन्न संतति का विशेष ध्यान रखें।
4. बाह्य परजीवी से बचाव के लिए दवा स्नान करायें।
5. दुहान से पहले अयन को गुनगुने पानी से धो लें।
फरवरी (माघ)
1. खुरपका-मुँहपका का टीका लगवाकर पशुओं को सुरक्षितकरें।
2. जिन पशुओं में जुलाई अगस्त में टीका लग चुका है, उन्हें पुनः टीके लगवायें।
3. बाह्य परजीवी तथा अन्तः परजीवी की दवा पिलवायें।
4. कृत्रिम गर्भाधान करायें।
5. बांझपन की चिकित्सा एवं गर्भ परीक्षण करायें।
6. बरसीम का बीज तैयार करें।
7. पशुओं को ठण्ड से बचाव का प्रबन्ध करें।
मार्च (फागुन)
1. पशुशाला की सफाई व पुताई करायें और विराक्लीन ( Viraclean ) का नियमित रूप से छिडकावं करें ।
2. बधियाकरण करायें।
3. खेत में चरी, सूडान तथा लोबिया की बुआई करें।
4. मौसम में परिवर्तन से पशु का बचाव करें।
ग्रोवेल का पशुपालन कैलेंडर में में दी गई निर्देशों को अपना कर आप अपने पशुओं को स्वस्थ , दुधारू और दीर्धायु रख सकतें हैं और अपने पशुपालन ब्यवसाय में अधिक लाभ कमा सकतें हैं।आपको इस लेख को भी पढ़ना चाहिये पशुपालन से सम्बंधित कुछ जरुरी बातें ।