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मुर्गीपालन ब्यवसाय से लाखों- करोड़ों कमा सकते हैं

मुर्गीपालन ब्यवसाय से लाखों- करोड़ों कमा सकते हैं

April 5, 2015

मुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जो आपकी आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है। बहुत कम लागत से शुरू होने वाला यह व्यवसाय लाखों-करोड़ों का मुनाफा दे सकता है। इसमें शैक्षणिक योग्यता और पूंजी से अधिक   अनुभव और मेहनत की दरकार होती है। आज के समय में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में युवा मुर्गीपालन को रोजगार का माध्यम बना सकते हैं।

अगर आपके पास औरों से अलग सोचने की क्षमता है, तो आप मुर्गीपालन ब्यवसाय से भी करोड़ों का मुनाफा कमा सकते हैं। मुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जिसे बहुत कम लागत से शुरू करके लाखों- करोड़ों रुपए का लाभ कमा सकते हैं। सुगुना पोल्ट्री के बी सौदारराजन और जीबी सुंदरराजन का उदाहरण सबके सामने है। इन्होंने मुर्गीपालन ब्यवसाय के बहुत छोटे से अपनी शुरुआत की और देखते ही देखते उनका यह मुर्गीपालन ब्यवसाय 4200 करोड़ की कंपनी में बदल गया। और तो और इस कंपनी ने 18 हजार किसानों को भी आय का बेहतर अवसर प्रदान किया। भारत में पोल्ट्री की शुरुआत मुख्यतया 1960 से हुई। पिछले तीन दशकों में मुर्गीपालन ब्यवसाय ने उद्योग का रूप ले लिया है।

मुर्गीपालन ब्यवसाय पशुपालन विभाग के तहत आता है जिसका उद्देश्य खाद्यान्नों में मीट और अंडों का बढ़ावा देना है। भारत के लगभग 90 लाख लोग मुर्गीपालन ब्यवसाय  से जुड़े हुए हैं और हर वर्ष सकल घरेलू उत्पाद में इसका 70 हजार करोड़ का योगदान है।

मुर्गीपालन ब्यवसाय भारत में 8 से 10 प्रतिशत वार्षिक औसत विकास दर के साथ कृषि क्षेत्र का तेजी के साथ विकसित हो रहा एक प्रमुख हिस्सा है। इसके परिणाम-स्वरूप भारत अब विश्व का तीसरा सबसे बड़ा अण्डा उत्पादक(चीन और अमरीका के बाद) तथा कबाब चिकन मांस का 5वां बड़ा उत्पादक देश (अमरीका, चीन, ब्राजील और मैक्सिको के बाद) हो गया है। कुक्कुट क्षेत्र का सकल राष्ट्रीय उत्पाद में करीब 33000 करोड़ रु. का योगदान है और अगले पांच वर्षों में इसके करीब 60000 करोड़ रु. तक पहुंचने की संभावना है। 352 अरब रुपए से अधिक के कारोबार के साथ यह क्षेत्र देश में 30 लाख से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध् कराता है तथा इसमें रोजगार के अवसरों के सृजन की व्यापक संभावनाएं हैं।

पिछले चार दशकों में मुर्गीपालन ब्यवसाय क्षेत्र में शानदार विकास के बावजूद, कुक्कुट उत्पादों की उपलब्धता तथा मांग में काफी बड़ा अंतर है। वर्तमान में प्रति व्यक्ति वार्षिक 180 अण्डों की मांग के मुकाबले 46 अण्डों की उपलब्धता है। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति वार्षिक 11 कि.ग्रा. मीट की मांग के मुकाबले केवल 1.8 कि.ग्रा. प्रति व्यक्ति कुक्कुट मीट की उपलब्धता है। इस प्रकारघरेलू मांग को पूरा करने के वास्ते अण्डों के उत्पादन में चार गुणा तथा मीट के उत्पादन में छः गुणा किए जाने की आवश्यकता है। यदि हम घरेलू मांग के साथ-साथ निर्यात बाजार में भारत के हिस्से का लेखा-जोखा देखें तो देश में कुक्कुट उत्पादों के उत्पादन में व्यापक अंतर है। जनसंख्या में वृद्वि जीवनचर्या में परिवर्तन, खाने-पीने की आदतों में परिवर्तन, तेजी से शहरीकरण,प्रति व्यक्ति आय में वृद्वि स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरुकता, युवा जनसंख्या के बढ़ते आकार आदि के कारण कुक्कुट उत्पादों की मांग में जबर्दस्त वृद्वि हुई है। वर्तमान बाजार परिदृश्य में कुक्कुट उत्पाद उच्च जैविकीय मूल्य के प्राणी प्रोटीन का सबसे सस्ता उत्पाद है।

भारत, चीन और अमरीका के बाद विश्व का सबसे ज्यादा अंडा उत्पादक देश है और अमरीका,चीन, ब्राजील और मैक्सिको के बाद विश्व का पांचवां सबसे से ज्यादा चिकन उत्पादक देश है।मुर्गीपालन ब्यवसाय से भारत में बेरोजगारी भी काफी हद तक कम हुई है। आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर बैंक से लोन लेकर मुर्गीपालन ब्यवसाय की शुरुआत की जा सकती है और कई योजनाओं में तो बैंक से लिए गए लोन पर सरकार सबसिडी भी देती है। कुल मिलाकर इस व्यवसाय के जरिए मेहनत और लगन से सिफर से शिखर तक पहुंचा जा सकता है।

मुर्गीपालन ब्यवसाय क्या है?

मांस और अंडे की उपलब्धता के लिए मुर्गी और बतख को पालने के व्यवसाय को मुर्गीपालन कहा जाता है। खाद्यान्नों की बढ़ती मांग ने इस व्यवसाय को चार चांद लगाए हैं।

मुर्गीपालन ब्यवसाय के लिये शैक्षणिक योग्यता:

इस व्यवसाय में आने के लिए शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं होती। फिर भी, एनिमल साइंस और जीव विज्ञान का ज्ञान होना जरूरी है। जो लोग वैटरिनरी साइंस में ग्रेजुएट हैं, वे पोल्ट्री फार्मिंग को व्यवसाय के रूप में चुन सकते हैं।

मुर्गीपालन ब्यवसाय के लिये आवश्यक व्यक्तिगत कौशल :

पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय में कुछ कौशल होना अनिवार्य हैं। जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न हैं-

 पोल्ट्री का ज्ञान हो ,जिसमें मुर्गियों की देखभाल भी शामिल है।

 मुर्गियों के स्वास्थ्य की देखभाल करने का ज्ञान।

 मुर्गियों को बीमारी से कैसे बचाना है, इसकी जानकारी।

 पोल्ट्री व्यवसायी के लिए मेहनती होना जरूरी है।

 पोल्ट्री फार्म के आसपास के इलाके के रखरखाव का ज्ञान हो।

 इस क्षेत्र के व्यवसायी के लिए स्वस्थ होना जरूरी है। उसे अस्थमा और दूसरी सांस संबंधी बीमारी नहीं होनी चाहिए।

सफल लाभदायक और मुर्गीपालन से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण सुझाव:

पशुपालन बैज्ञानिकों का मानना है कि यदि योजनाबद्ध तरीके से मुर्गीपालन किया जाए तो कम खर्च में अधिक आय की जा सकती है। बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। वजह, कभी-कभी लापरवाही के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भारी क्षति उठानी पड़ती है। इसलिए मुर्गीपालन में ब्रायलर फार्म का आकार और बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

पशुपालन बैज्ञानिकों  के मुताबिक मुर्गियां तभी मरती हैं जब उनके रखरखाव में लापरवाही बरती जाए। मुर्गीपालन में हमें कुछ तकनीकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए। मसलन ब्रायलर फार्म बनाते समय यह ध्यान दें कि यह गांव या शहर से बाहर मेन रोड से दूर हो, पानी व बिजली की पर्याप्त व्यवस्था हो। फार्म हमेशा ऊंचाई वाले स्थान पर बनाएं ताकि आस-पास जल जमाव न हो। दो पोल्ट्री फार्म एक-दूसरे के करीब न हों। फार्म की लंबाई पूरब से पश्चिम हो। मध्य में ऊंचाई 12 फीट व साइड में 8 फीट हो। चौड़ाई अधिकतम 25 फीट हो तथा शेड का अंतर कम से कम 20 फीट होना चाहिए। फर्श पक्का होना चाहिए। इसके अलावा जैविक सुरक्षा के नियम का भी पालन होना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें। शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें। बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रखना चाहिए। कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि को शेड में न घुसने दें। मरे हुए चूजे, वैक्सीन के खाली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें, समय-समय पर शेड के बाहर डिसइंफेक्टेंट (Viraclean) विराक्लीन का छिड़काव व टीकाकरण नियमों का पालन करें। समय पर सही दवा का प्रयोग करें। पीने के पानी में (Aquacure) एक्वाक्योर का प्रयोग करें।

सही और अच्छी कंपनी का मुर्गी की दवा का प्रयोग करें , केवल दवा प्रयोग ही ना करें यह भी देखें इसका सही रिजल्ट आ रहा है या नहीं । सही क्वालिटी का चूजा होना अति आवश्यक है , इस बात की पता करें आपके इलाके में किस हेचरी या कंपनी का चूजा का रिजल्ट अच्छा है ,उसी हेचरी या कंपनी का चूजा खरीदें । अच्छी क्वालिटी का फीड भी होना आवश्यक है ।अच्छी कंपनी की दवा , फीड , चूजा और बायो-सिक्योरिटी के नियमों का पालन एक लाभदायक मुर्गी पालन ब्यवसाय के लिए अति -आवश्यक है।

मुर्गा मंडी की गाड़ी को फार्म से दूर खड़ा करें। मुर्गी के शेड में प्रतिदिन 23 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है। एक घंटे अंधेरा रखा जाता है। इसके पीछे मंशा यह कि बिजली कटने की स्थिति में मुर्गियां स्ट्रेस की शिकार न हों। प्रारम्भ में 10 से 15 दिन के अंदर तक दो वर्ग फीट के कमरे में 40 से 60 वाट के बल्ब का प्रयोग करने से चूजों को दाना-पानी ग्रहण करने में सुविधा होती है। इसके बाद 15 वाट बल्ब का प्रकाश पर्याप्त होता है।

मुर्गी के विष्ठा से खाद भी तैयार कर सकतें हैं :

मुर्गी की विष्ठा का खाद के रूप में भी उपयोग किया जाता है, जिससे फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है। 40 मुर्गियों की विष्ठा में उतने ही पोषक तत्त्व होते हैं जितने कि एक गाय के गोबर में होते हैं।

मुर्गीपालन ब्यवसाय से संबद्ध अन्य व्यवसाय:

पोल्ट्री सिर्फ चिकन और अंडों का व्यवसाय नहीं है। अब यह व्यवसाय इतना एडवांस हो गया है कि युवक और युवतियां इस में अपना कैरियर ब्रायलर, प्रोसेसिंग प्लांट मैनेजर, अनुसंधान, शिक्षा, बिजनेस, कंसल्टेंट, प्रबंधक, विज्ञापक, उत्पाद प्रौद्योगिकीविद, फीडिंग प्रौद्योगिकीविद, क्वालिटी कंट्रोल मैनेजर, हैचरी मैनेजर, पोल्ट्री वैटरिनेरियन, एग्रीकल्चरल इंजीनियर और जेनेटीसिस्ट के रूप में बना सकते हैं।

पोल्ट्री व्यवसाय में आय की कोई सीमा नहीं है। इस कार्य क्षेत्र में आय आपकी मेहनत पर ही निर्भर करती है। आपके व्यवसाय का प्रसार कितना है आपकी आय भी उसी अनुपात में होगी।  अनुसंधान और शिक्षण के क्षेत्र में प्रतिमाह 40 से 50 हजार रुपए कमाए जा सकते हैं। निजी पोल्ट्री फार्म में अनुभव और योग्यता के आधार पर 20 हजार से 75 हजार प्रतिमाह कमाए जा सकते हैं।

कुक्कुट उत्पादों की इस बढ़ती मांग से कुक्कुट उद्योग में विभिन्न श्रेणियों के एक करोड़ से अधिक रोजगार सृजन की आशा है।कुक्कुट विज्ञान में रोजगार के अवसर कुक्कुट विज्ञान मेंरोजगार के बहुत अवसर हैं। इसमें कोई व्यक्ति अनुसन्धान, शिक्षा, बिजनेस,कंसलटेंट, प्रबंधक, प्रजनक, विज्ञापक, कुक्कुट हाउस डिजाइनर, उत्पादन प्रौद्योगिकीविद प्रोसेसिंग प्रौद्योगिकीविद्, फीडिंग प्रौद्योगिकीविद्, प्रौद्योगिकीविद्, कुक्कुट अर्थशास्त्री आदि का विकल्प चुन सकते हैं।

इसके अलावा भी बहुत से अवसर हैं जो कि व्यक्ति विशेष की अभिरुचि तथा योग्यता पर निर्भर करता है। कुक्कुट विशेषज्ञ बनने तथा विशेषीकृत रोजगार हासिल करने के इच्छुक व्यक्तियों को सबसे पहले बी.वी.एससी. एवं ए.एच. की पढ़ाई (पशु-चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन में स्नातक) पूरी करनी होती है। बी.वी.एससी. एवं ए.एच. का अध्ययन करने के लिए न्यूनतम योग्यता भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान (पीसीबी) में10+2 है। स्नातक डिग्री पूरी करने के उपरांत कोई व्यक्ति कुक्कुट विषय-क्षेत्रों में विशेषज्ञ बनने के लिए एम.वी. एससी. (पशुचिकित्सा विज्ञान में मास्टर) का स्नातकोत्तर कार्यक्रम तथा संबद्व विषय में पी-एच. डी. कर सकता है।

मुर्गीपालन  विज्ञान में स्नातकोत्तर/पी-एच.डी. पाठ्यक्रम संचालित करने वाले विश्वविद्यालयों/संस्थानों की सूची:

  1. आणंद कृषि विश्वविद्यालय आणंद, गुजरात
  2. असम कृषि विश्वविद्यालय खानपाड़ा
  3. भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान/केंद्रीय पक्षी इज्जतनगर, उत्तर प्रदेश अनुसंधान संस्थान
  4. जे. के. कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर, मध्य प्रदेश
  5. कर्नाटक पशु-चिकित्सा एवं पशु पालन विश्वविद्यालय बंगलौर और बीदर
  6. केरल कृषि विश्वविद्यालय मानुथी
  7. महाराष्ट्र पशु एवं मात्स्यिकी विज्ञान विश्वविद्यालय नागपुर, अकोला, मुंबई और परभणी
  8. उड़ीसा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भुवनेश्वर
  9. श्री वेंकटेश्वर पशुचिकित्सा एवं मात्स्यिकी तिरुपति तथा हैदराबाद विश्वविद्यालय
  10. तमिलनाडु पशु-चिकित्सा एवं पशु विज्ञान चेन्नै और नामाखल विश्वविद्यालय
  11. उ.प्र. पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु-चिकित्सा विज्ञान मथुरा विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसंधान अनुष्ठान
  12. राजीव गाँधी पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान पुदुच्चेरी महाविद्यालय

हालांकि कुक्कुट उद्योग में सामान्य प्रकार के रोजगारों के लिए, जैसे कि फार्म मैनेजर, सेल्स मैनेजर, इनपुट मैनेजर आदि के रूप में कॅरिअर शुरू करने के वास्ते बी.वी.एससी. तथा ए.एच. की डिग्री होना अनिवार्य नहीं है। वे कुक्कुट उद्योग में सामान्य प्रकार के विभिन्न रोजगारों के लिए पात्रता हेतु देश में विभिन्न संस्थानों द्वारा संचालित किए जाने वाले प्रमाण- में का विकल्प चुन सकते हैं। कुक्कुट विज्ञान में डिप्लोमा/प्रमाण-पत्र और कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करने वाले कुछेक संस्थान निम्नानुसार हैं :-

  1. केंद्रीय कुक्कुट विकास संगठन(सीपीडीओ), मुंबई, बंगलौर, भुवनेश्वर, चंडीगढ़
  2. इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय(इग्नू), नई दिल्ली
  3. केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान(सीएआरआई), इज्जतनगर-243122, उ.प्र.
  4. पोल्ट्री डायग्नोस्टिक रिसर्च सेंटर(पीडीआरसी), पुणे
  5. भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधन संस्थान(आईवीआरआई), इज्जतनगर-243122, उ.प्र.
  6. राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान
  7. कृष्णकांत हांडिक राज्य मुक्त विश्वविद्यालय
  8. अन्नामलै विश्वविद्यालय
  9. डॉ. बी.वी. राव कुक्कुट प्रबंध् एवं प्रौद्योगिकी संस्थान(आईपीएमटी), पुणे (म.रा.) 412202

उपर्युक्त सूची केवल सांकेतिक है। इच्छुक उम्मीदवार कुक्कुट विज्ञान के विभिन्न पाठ्यक्रमों के बारे में अपनी पसंद के संस्थानों के बारे में पूछताछ कर सकते हैं। बीवी राव कुक्कुट प्रबंध् एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, पुणे नियिमित रूप से निम्नलिखित पाठ्यक्रम संचालित करता है :-

  1. बेसिक कॉमर्शियल पोल्ट्री मैनेजमेंट कोर्स
  2. वर्तमान कृषकों हेतु अभिविन्यास/निर्देशन पाठ्यक्रम
  3. बड़े पैमाने पर कुक्कुट फार्मिंग हेतु उन्नत पाठ्यक्रम
  4. फीड निर्माताओं के लिए पफीड फार्मूलेशन एवं फीड एनालाइसिस पाठ्यक्रम
  5. अंडज उत्पादन में संलग्न व्यक्तियों के लिए अंडज उत्पत्तिशाला प्रबंधन पाठ्यक्रम
  6. गैर-तकनीकी/वित्तीय व्यक्तियों के लिए कुक्कुट प्रबंधन में प्रोत्साहन पाठ्यक्रमरोजगार के अवसर

कुक्कुट विज्ञान को कॅरिअर के रूप में चुनने वाले व्यक्तियों के लिए विभिन्न प्रकार के स्वरोजगार तथा अन्य रोजगार के अवसर उपलब्ध् हैं। कोई व्यक्ति अपनी योग्यता और अकादमिक पृष्ठभूमि के अनुरूप अकादमिक क्षेत्र में सहायक प्रोफेसर के रूप में, अनुसंधान संगठन में एक शोधकर्ता तथा वैज्ञानिक के रूप में, केंद्र और राज्य सरकारों के विभागों में संबद्व विषयों के विशेषज्ञों के रूप में तथा पोल्ट्री फार्म के प्रबंधक के तौर पर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। इसी प्रकार कुक्कुट विज्ञान स्नातकों के लिए निजी पोल्ट्री और संबंधित उद्योगों में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर उपलब्ध् हैं। इसके अलावा कुक्कुट व्यवसाय से संबंधित परामर्शी और स्व-रोजगार के विकल्प को भी चुना जा सकता है। कुक्कुट विज्ञान व्यावसायिकों के लिए पारिश्रमिक बहुत आकर्षक हैं। केंद्र और राज्य सरकार में कोई व्यक्ति रु. 30000 से रु. 40000 के बीच प्रतिमाह वेतन की आशा रख सकता है जो कि उसकी योग्यताओं पर निर्भर करता है। अनुसंधान और शिक्षण संस्थानों में वेतन प्रतिमाह रु. 40000 से रु. 50000 के बीच होता है।

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